आज सोचा है कि ख़ुद रस्ते बनाना सीख लूँ
इस तरह तो उम्र सारी सोचती रह जाऊँगी
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ख़ाली हाथों में मोहब्बत बाँटती रह जाऊँगी
पंक्चुवेशन
एक तअल्लुक़ जान के मिलते हैं वर्ना
नक़्श जब ज़ख़्म बना ज़ख़्म भी नासूर हुआ
ऐसा क्या अंधेर मचा है मेरे ज़ख़्म नहीं भरते
उस रस्ते पर जाते देखा कोई नहीं है
बदन और ज़ेहन मिल बैठे हैं फिर से
मुश्किल
रिसाइकिलबिन
मयस्सर ख़ुद निगह-दारी की आसाइश नहीं रहती
कुल्लिया