ज़बां Poetry (page 16)

घर की रौनक़

रज़ा नक़वी वाही

जिंस-ए-गिराँ का मैं हूँ ख़रीदार दोस्तो

रज़ा जौनपुरी

हर अक्स ख़ुद एक आइना है

रज़ा हमदानी

उस चश्म ने कि तूतियों को नुक्ता-दाँ किया

रज़ा अज़ीमाबादी

सच कह 'रज़ा' ये किस से लगाई है साट-बाट

रज़ा अज़ीमाबादी

जो तिरे दर पे मेरी जाँ आया

रज़ा अज़ीमाबादी

अब तो तुम भी जवाँ हुए हो देखेंगे दिल को बचाओगे तुम

रज़ा अज़ीमाबादी

उर्दू जिसे कहते हैं तहज़ीब का चश्मा है

रविश सिद्दीक़ी

ज़हर-ए-चश्म-ए-साक़ी में कुछ अजीब मस्ती है

रविश सिद्दीक़ी

वो निकहत-ए-गेसू फिर ऐ हम-नफ़साँ आई

रविश सिद्दीक़ी

निकहत-ए-ज़ुल्फ़ को हम-रिश्ता-ए-जाँ कहता हूँ

रविश सिद्दीक़ी

एक लग़्ज़िश में दर-ए-पीर-ए-मुग़ाँ तक पहुँचे

रविश सिद्दीक़ी

नाश्ते पर जिसे आज़ाद किया है मैं ने

रउफ़ रज़ा

शम्अ' में सोज़ की वो ख़ू है न परवाने में

रशीद शाहजहाँपुरी

आँखों आँखों में मोहब्बत का पयाम आ ही गया

रशीद शाहजहाँपुरी

ख़याल की तरह चुप हो सदा हुए होते

राशिद आज़र

फ़ासला रक्खो ज़रा अपनी मुदारातों के बीच

राशिद आज़र

चाँद तन्हा है कहकशाँ तन्हा

रशीदुज़्ज़फ़र

तर्क-ए-सितम पे वो जो क़सम खा के रह गए

रशीद रामपुरी

खुला ये उन के अंदाज़-ए-बयाँ से

रशीद रामपुरी

कोई तो है कि नए रास्ते दिखाए मुझे

रशीद निसार

न छोड़ा दिल-ए-ख़स्ता-जाँ चलते चलते

रशीद लखनवी

गर्म रफ़्तार है तेरी ये पता देते हैं

रशीद लखनवी

हुस्न क्या जिस को किसी हुस्न से ख़तरा न हुआ

रशीद कौसर फ़ारूक़ी

हिम्मत-ए-आली का इतना तो ज़ियाँ होना ही था

रशीद कौसर फ़ारूक़ी

आँखों में ज़िंदगी के तमाशे उछाल कर

रशीद एजाज़

कौन दिल की ज़बाँ समझता है

रसा चुग़ताई

दिल ने अपनी ज़बाँ का पास किया

रसा चुग़ताई

मेरे ख़त का जवाब आया था

राणा गन्नौरी

इस सदी का जब कभी ख़त्म-ए-सफ़र देखेंगे लोग

रम्ज़ अज़ीमाबादी

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