ज़बां Poetry (page 18)

उधर जो शख़्स भी आया उसे जवाब हुआ

इनाम कबीर

हर सम्त से उठता है धुआँ शहर के लोगो

इनाम हनफ़ी

अपने लहू में ज़हर भी ख़ुद घोलता हूँ मैं

इमरान-उल-हक़ चौहान

आसमाँ मिल न सका धरती पे आया न गया

इमरान हुसैन आज़ाद

सूली चढ़े जो यार के क़द पर फ़िदा न हो

इम्दाद इमाम असर

कब ग़ैर हुआ महव तिरी जल्वागरी का

इम्दाद इमाम असर

दिल से क्या पूछता है ज़ुल्फ़-ए-गिरह-गीर से पूछ

इम्दाद इमाम असर

ये क्या कहा मुझे ओ बद-ज़बाँ बहुत अच्छा

इमदाद अली बहर

किया सलाम जो साक़ी से हम ने जाम लिया

इमदाद अली बहर

ख़ुर्शीद फ़िराक़ में तपाँ है

इमदाद अली बहर

ख़ूब-रूयान-ए-जहाँ चाँद की तनवीरें हैं

इमदाद अली बहर

रिफ़अत कभी किसी की गवारा यहाँ नहीं

इमाम बख़्श नासिख़

दिल में पोशीदा तप-ए-इश्क़-ए-बुताँ रखते हैं

इमाम बख़्श नासिख़

किसी की बात कोई बद-गुमाँ न समझेगा

इमाम अाज़म

जुज़ क़ुर्बत-ए-जाँ पर्दा-ए-जाँ कोई नहीं था

इफ्तिखार शफ़ी

हम से अपने गाँव की मिट्टी के घर छीने गए

इफ़्तिख़ार क़ैसर

नाम भी जिस का ज़बाँ पर था दुआओं की तरह

इफ़्तिख़ार नसीम

इस तरह सोई हैं आँखें जागते सपनों के साथ

इफ़्तिख़ार नसीम

रविश में गर्दिश-ए-सय्यारगाँ से अच्छी है

इफ़्तिख़ार आरिफ़

अज़ाब ये भी किसी और पर नहीं आया

इफ़्तिख़ार आरिफ़

मक़्तल के इस सुकूत पे हैरत है क्या कहें

इफ़्तिख़ार आज़मी

दर्द अब दिल की दवा हो जैसे

इफ़्तिख़ार आज़मी

ख़्वाब आँखों से ज़बाँ से हर कहानी ले गया

इफ़्फ़त ज़र्रीं

रहमतों में तिरी आग़ोश की पाले गए हम

इफ़्फ़त अब्बास

किसी के हाथ कहाँ ये ख़ज़ाना आता है

इदरीस बाबर

ख़मोश रह के ज़वाल-ए-सुख़न का ग़म किए जाएँ

इदरीस बाबर

अपने एहसानों का नीला साएबाँ रहने दिया

इबरत मछलीशहरी

बे-ज़मीरों के कभी झाँसे में मैं आता नहीं

इबरत बहराईची

मुझे न देखो मिरे जिस्म का धुआँ देखो

इब्राहीम अश्क

दुनिया लुटी तो दूर से तकता ही रह गया

इब्राहीम अश्क

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