किसी के ऐब छुपाना सवाब है लेकिन
कभी कभी कोई पर्दा उठाना पड़ता है
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नज़र की ज़द में सर कोई नहीं है
मुझ को भी जागने की अज़िय्यत से दे नजात
घर तो हमारा शो'लों के नर्ग़े में आ गया
आज भी शाम-ए-ग़म! उदास न हो
इस रास्ते में जब कोई साया न पाएगा
ग़मों से यूँ वो फ़रार इख़्तियार करता था
हक़ीक़तों का नई रुत की है इरादा क्या
शुरू-ए-इश्क़ में लोगों ने इतनी शिद्दत की
वो ताज़ा-दम हैं नए शो'बदे दिखाते हुए
करने को रौशनी के तआक़ुब का तजरबा
वो मेरा यार था मुझ को न ये ख़याल आया
चलते चलते साल कितने हो गए