वो ताज़ा-दम हैं नए शो'बदे दिखाते हुए
अवाम थकने लगे तालियाँ बजाते हुए
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हर एक रात को महताब देखने के लिए
अपने आँचल में छुपा कर मिरे आँसू ले जा
जवान हो गई इक नस्ल सुनते सुनते ग़ज़ल
रंगतें मासूम चेहरों की बुझा दी जाएँगी
जब तक सफ़ेद आँधी के झोंके चले न थे
पुराने अहद में भी दुश्मनी थी
मयस्सर हो जो लम्हा देखने को
इस रास्ते में जब कोई साया न पाएगा
वो जिस के सेहन में कोई गुलाब खिल न सका
कभी क़रीब कभी दूर हो के रोते हैं
तमाम शख़्सियत उस की हसीं नज़र आई
ये भी रहा है कूचा-ए-जानाँ में अपना रंग