वो जिस के सेहन में कोई गुलाब खिल न सका
तमाम शहर के बच्चों से प्यार करता था
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मेरी ख़ामोशी पे थे जो तअना-ज़न
मैं जिसे ढूँडने निकला था उसे पा न सका
उदास उदास तबीअ'त जो थी बहलने लगी
उस को आदाब बिछड़ने के सिखाता हुआ मैं
शुरू-ए-इश्क़ में लोगों ने इतनी शिद्दत की
किताबें जब कोई पढ़ता नहीं था
वो ताज़ा-दम हैं नए शो'बदे दिखाते हुए
रंगतें मासूम चेहरों की बुझा दी जाएँगी
मुझ को भी जागने की अज़िय्यत से दे नजात
पलट चलें कि ग़लत आ गए हमीं शायद
कभी क़रीब कभी दूर हो के रोते हैं