मैं जिसे ढूँडने निकला था उसे पा न सका
अब जिधर जी तिरा चाहे मुझे ख़ुश्बू ले जा
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फ़न उड़ानों का जब ईजाद किया था मैं ने
उदास उदास तबीअ'त जो थी बहलने लगी
बनाए ज़ेहन परिंदों की ये क़तार मिरा
अजब जुनून है ये इंतिक़ाम का जज़्बा
हुआ उजाला तो हम उन के नाम भूल गए
हक़ीक़तों का नई रुत की है इरादा क्या
इस बुलंदी पे कहाँ थे पहले
हम ने जो क़सीदों को मुनासिब नहीं समझा
नज़र की ज़द में सर कोई नहीं है
इस रास्ते में जब कोई साया न पाएगा
वो मेरा यार था मुझ को न ये ख़याल आया
कभी क़रीब कभी दूर हो के रोते हैं