हुआ उजाला तो हम उन के नाम भूल गए
जो बुझ गए हैं चराग़ों की लौ बढ़ाते हुए
Allama Iqbal
Gulzar
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Parveen Shakir
Habib Jalib
Jaun Eliya
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Love Poetry
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Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
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जाने आया था क्यूँ मकान से मैं
ये भी रहा है कूचा-ए-जानाँ में अपना रंग
बनाए ज़ेहन परिंदों की ये क़तार मिरा
सब देख कर गुज़र गए इक पल में और हम
जब तक सफ़ेद आँधी के झोंके चले न थे
नज़र की ज़द में सर कोई नहीं है
वो मेरा यार था मुझ को न ये ख़याल आया
अपनी तस्वीर बनाओगे तो होगा एहसास
वो ताज़ा-दम हैं नए शो'बदे दिखाते हुए
उदास उदास तबीअ'त जो थी बहलने लगी
इस हादसे को देख के आँखों में दर्द है
ख़त उस के अपने हाथ का आता नहीं कोई