हर एक रात को महताब देखने के लिए
मैं जागता हूँ तिरा ख़्वाब देखने के लिए
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तारीख़ भी हूँ उतने बरस की मोअर्रिख़ो
चौराहों का तो हुस्न बढ़ा शहर के मगर
किताबें जब कोई पढ़ता नहीं था
इस कार-ए-आगही को जुनूँ कह रहे हैं लोग
ये और बात कि आँधी हमारे बस में नहीं
लोग यूँ कहते हैं अपने क़िस्से
अज़िय्यत उस की ज़ेहनी दूर कर दे
तिरे तक़ाज़ों पे चेहरे बदल रहा हूँ मैं
इस रास्ते में जब कोई साया न पाएगा
फ़न उड़ानों का जब ईजाद किया था मैं ने
वो ताज़ा-दम हैं नए शो'बदे दिखाते हुए
ये अलग बात कि मैं नूह नहीं था लेकिन