चौराहों का तो हुस्न बढ़ा शहर के मगर
जो लोग नामवर थे वो पत्थर के हो गए
Anwar Masood
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Rahat Indori
Javed Akhtar
Gulzar
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जहाँ ज़िदें किया करता था बचपना मेरा
रंगतें मासूम चेहरों की बुझा दी जाएँगी
कुछ आरज़ी उजाले बचाए हुए हैं लोग
इस कार-ए-आगही को जुनूँ कह रहे हैं लोग
अजब जुनून है ये इंतिक़ाम का जज़्बा
इस हादसे को देख के आँखों में दर्द है
जवानों में तसादुम कैसे रुकता
हर एक रात को महताब देखने के लिए
वो ताज़ा-दम हैं नए शो'बदे दिखाते हुए
वो मेरा यार था मुझ को न ये ख़याल आया
अब मिरे ब'अद कोई सर भी नहीं होगा तुलू'अ
तारीख़ भी हूँ उतने बरस की मोअर्रिख़ो