जहाँ ज़िदें किया करता था बचपना मेरा
कहाँ से लाऊँ खिलौनों की उन दुकानों को
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वो तड़प जाए इशारा कोई ऐसा देना
क़यामत आएगी माना ये हादिसा होगा
मुझ को भी जागने की अज़िय्यत से दे नजात
अज़िय्यत उस की ज़ेहनी दूर कर दे
जवान हो गई इक नस्ल सुनते सुनते ग़ज़ल
रंगतें मासूम चेहरों की बुझा दी जाएँगी
कभी क़रीब कभी दूर हो के रोते हैं
ख़त उस के अपने हाथ का आता नहीं कोई
मैं जिसे ढूँडने निकला था उसे पा न सका
करने को रौशनी के तआक़ुब का तजरबा
चलते चलते साल कितने हो गए
इस रास्ते में जब कोई साया न पाएगा