करने को रौशनी के तआक़ुब का तजरबा
कुछ दूर मेरे साथ भी परछाइयाँ गईं
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पुराने अहद में भी दुश्मनी थी
अब मिरे ब'अद कोई सर भी नहीं होगा तुलू'अ
शिकस्तगी में भी क्या शान है इमारत की
कभी क़रीब कभी दूर हो के रोते हैं
रंगतें मासूम चेहरों की बुझा दी जाएँगी
ग़मों से यूँ वो फ़रार इख़्तियार करता था
हक़ीक़तों का नई रुत की है इरादा क्या
उस को आदाब बिछड़ने के सिखाता हुआ मैं
उदास उदास तबीअ'त जो थी बहलने लगी
ये अलग बात कि मैं नूह नहीं था लेकिन
मुझ को भी जागने की अज़िय्यत से दे नजात
जवानों में तसादुम कैसे रुकता