अब मिरे ब'अद कोई सर भी नहीं होगा तुलू'अ
अब किसी सम्त से पत्थर भी नहीं आएगा
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घर का रस्ता जो भूल जाता हूँ
वो तड़प जाए इशारा कोई ऐसा देना
जवान हो गई इक नस्ल सुनते सुनते ग़ज़ल
सब देख कर गुज़र गए इक पल में और हम
अभी बिछड़ा है वो कुछ रोज़ तो याद आएगा
हक़ीक़तों का नई रुत की है इरादा क्या
तारीख़ भी हूँ उतने बरस की मोअर्रिख़ो
इस रास्ते में जब कोई साया न पाएगा
तमाम शख़्सियत उस की हसीं नज़र आई
तिरे तक़ाज़ों पे चेहरे बदल रहा हूँ मैं
नज़र की ज़द में सर कोई नहीं है
ख़त उस के अपने हाथ का आता नहीं कोई