तारीख़ भी हूँ उतने बरस की मोअर्रिख़ो
चेहरे पे मेरे जितने बरस की ये गर्द है
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हर एक रात को महताब देखने के लिए
इस रास्ते में जब कोई साया न पाएगा
किताबें जब कोई पढ़ता नहीं था
वो जिस के सेहन में कोई गुलाब खिल न सका
अभी बिछड़ा है वो कुछ रोज़ तो याद आएगा
जाने आया था क्यूँ मकान से मैं
जहाँ ज़िदें किया करता था बचपना मेरा
इस हादसे को देख के आँखों में दर्द है
बनाए ज़ेहन परिंदों की ये क़तार मिरा
कुछ आरज़ी उजाले बचाए हुए हैं लोग
सँभल के चलने का सारा ग़ुरूर टूट गया
अब मिरे ब'अद कोई सर भी नहीं होगा तुलू'अ