इस कार-ए-आगही को जुनूँ कह रहे हैं लोग
महफ़ूज़ कर रहे हैं फ़ज़ा में सदाएँ हम
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
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शिकस्तगी में भी क्या शान है इमारत की
मैं जिसे ढूँडने निकला था उसे पा न सका
ये क्या कि रंग हाथों से अपने छुड़ाएँ हम
सँभल के चलने का सारा ग़ुरूर टूट गया
आज शहरों में हैं जितने ख़तरे
आज भी शाम-ए-ग़म! उदास न हो
मेरी ख़ामोशी पे थे जो तअना-ज़न
कभी क़रीब कभी दूर हो के रोते हैं
उन के भी अपने ख़्वाब थे अपनी ज़रूरतें
जहाँ ज़िदें किया करता था बचपना मेरा
जब तक सफ़ेद आँधी के झोंके चले न थे
अब मिरे ब'अद कोई सर भी नहीं होगा तुलू'अ