पलट चलें कि ग़लत आ गए हमीं शायद
रईस लोगों से मिलने के वक़्त होते हैं
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Wasi Shah
Gulzar
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Rahat Indori
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(883) Peoples Rate This
बनाए ज़ेहन परिंदों की ये क़तार मिरा
रंगतें मासूम चेहरों की बुझा दी जाएँगी
सँभल के चलने का सारा ग़ुरूर टूट गया
जाने आया था क्यूँ मकान से मैं
घर का रस्ता जो भूल जाता हूँ
उस को आदाब बिछड़ने के सिखाता हुआ मैं
अजब जुनून है ये इंतिक़ाम का जज़्बा
पुराने अहद में भी दुश्मनी थी
सब देख कर गुज़र गए इक पल में और हम
क़यामत आएगी माना ये हादिसा होगा
किताबें जब कोई पढ़ता नहीं था
आज शहरों में हैं जितने ख़तरे