ग़ज़ल का शेर तो होता है बस किसी के लिए
मगर सितम है कि सब को सुनाना पड़ता है
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Rahat Indori
Wasi Shah
Habib Jalib
Gulzar
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1054) Peoples Rate This
आज शहरों में हैं जितने ख़तरे
रंगतें मासूम चेहरों की बुझा दी जाएँगी
किसी के ऐब छुपाना सवाब है लेकिन
बनाए ज़ेहन परिंदों की ये क़तार मिरा
वो मेरा यार था मुझ को न ये ख़याल आया
हुआ उजाला तो हम उन के नाम भूल गए
वो जिस के सेहन में कोई गुलाब खिल न सका
चलते चलते साल कितने हो गए
इस रास्ते में जब कोई साया न पाएगा
ग़मों से यूँ वो फ़रार इख़्तियार करता था
जाने आया था क्यूँ मकान से मैं
पलट चलें कि ग़लत आ गए हमीं शायद