मन Poetry (page 3)

इस ज़माने में न हो क्यूँकर हमारा दिल उदास

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

औक़ात-ए-शैख़ गो कि सुजूद ओ क़याम है

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

दिल ओ दिमाग़ में एहसास-ए-ग़म उभार दिया

शहज़ाद अहमद

ज़वाल की हद

शहरयार

बरसात का उधर है दिमाग़ आसमान पर

शहूद आलम आफ़ाक़ी

जिगर का जूँ शम्अ काश या-रब हो दाग़ रौशन मुराद हासिल

शाह नसीर

दस्तियाब उस को हुआ जब से है गुल-दस्ता-ए-दाग़

शाह आसिम

कब से इस दुनिया को सरगर्म-ए-सफ़र पाता हूँ मैं

शफ़ीक़ जौनपुरी

जिस के हम बीमार हैं ग़म ने उसे भी राँदा है

शाद लखनवी

ख़्वाह मुफ़्लिसी से निकल गया या तवंगरी से निकल गया

शाद बिलगवी

नज़्म

शबनम अशाई

नज़्म

शबनम अशाई

मैं भी रौशन दिमाग़ रखता हूँ

शब्बीर नकिद

तारे जो आसमाँ से गिरे ख़ाक हो गए

शाद आरफ़ी

ब-क़ैद-ए-वक़्त ये मुज़्दा सुना रहा है कोई

सीमाब अकबराबादी

जिगर के ख़ून से रौशन गो ये चराग़ रहा

सय्यद एजाज़ अहमद रिज़वी

दिखाऊँगा तुझे ज़ाहिद उस आफ़त-ए-दीं को

मोहम्मद रफ़ी सौदा

नासेह को जेब सीने से फ़ुर्सत कभू न हो

मोहम्मद रफ़ी सौदा

मगर वो दीद को आया था बाग़ में गुल के

मोहम्मद रफ़ी सौदा

अगला सफ़र तवील नहीं

सत्यपाल आनंद

देखा किसी का हम ने न ऐसा सुना दिमाग़

सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी

यूँ अकेला दश्त-ए-ग़ुर्बत में दिल-ए-नाकाम था

साक़िब लखनवी

ये ज़ुल्म है ख़याल से ओझल न कर उसे

साक़ी फ़ारुक़ी

आहटों से दिमाग़ जलता है

समद अंसारी

तमाम उम्र की तन्हाइयों पे भारी थी

सलीम शुजाअ अंसारी

जिस आग से दिल सुलग रहे थे

सलीम अहमद

वो मिरे दिल की रौशनी वो मिरे दाग़ ले गई

सलीम अहमद

मिला जो काम ग़म-ए-मो'तबर बनाने का

सलीम अहमद

जो दिल में हैं दाग़ जल रहे हैं

सलीम अहमद

दिल कलेजे दिमाग़ सीना ओ चश्म

सख़ी लख़नवी

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