दिल कलेजे दिमाग़ सीना ओ चश्म
इन के रहने के हैं मकान बहुत
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क़ब्र में अब किसी का ध्यान नहीं
मिरे लाशे को कांधा दे के बोले
गुफ़्तुगू हो दबी ज़बान बहुत
तुम अगर दो न पैरहन अपना
हैफ़ साबित है जेब ने दामन
कहना मजनूँ से कि कल तेरी तरफ़ आऊँगा
शैख़-जी बुत की बुराई कीजे
नक़्द-ए-दिल का बड़ा तक़ाज़ा है
ली ज़बाँ उस की जो मुँह में हो गया ज़ौक़-ए-नबात
ना-ख़ुश जो हो गुल-बदन किसी का
निस्बत वही माह-ए-आसमाँ से
रंगत उस रुख़ की गुल ने पाई है