मिरे लाशे को कांधा दे के बोले
चलो तुर्बत में अब तुम को सुलाएँ
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इश्क़ करने में दिल भी क्या है शोख़
मैं तुझे फिर ज़मीं दिखाऊँगा
रहते काबे में अकेले क्या हम
था हिना से जो शोख़ मेरा ख़ूँ
क़ब्र में अब किसी का ध्यान नहीं
हमा-तन हो गए हैं आईना
कहना मजनूँ से कि कल तेरी तरफ़ आऊँगा
दम-ए-यार ता-नज़'अ भर लीजिए
बद्र और महर दो हैं नाम उन के
ख़ुदा के पास क्या जाएँगे ज़ाहिद
तुम न आसान को आसाँ समझो
बहुत ख़्वाब-ए-ग़फ़लत में दिन चढ़ गया