था हिना से जो शोख़ मेरा ख़ूँ
बोले ये लाल लाल है कुछ और
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हम पे जौर-ओ-सितम के क्या मअनी
कअ'बे में सख़्त-कलामी सुन ली
बर्ग-ए-गुल आ मैं तेरे बोसे लूँ
दिल कलेजे दिमाग़ सीना ओ चश्म
आँखों से पा-ए-यार लगाने की है हवस
न छोड़ा हिज्र में भी ख़ाना-ए-तन
रुख़ पर है मलाल आज कैसा
सीने से हमारा दिल न ले जाओ
रहते काबे में अकेले क्या हम
तुम न आसान को आसाँ समझो
क़ब्र में अब किसी का ध्यान नहीं
ली ज़बाँ उस की जो मुँह में हो गया ज़ौक़-ए-नबात