सीने से हमारा दिल न ले जाओ
छुड़वाते हो क्यूँ वतन किसी का
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जाएगी गुलशन तलक उस गुल की आमद की ख़बर
चर्ख़ पर बद्र जिस को कहते हैं
था मिरा नाख़ुन-ए-तराशीदा
'सख़ी' से छूट कर जाएँगे घर आप
तुम न आसान को आसाँ समझो
फिर उलझते हैं वो गेसू की तरह
रुख़ हाथ पे रक्खा न करो वक़्त-ए-तकल्लुम
दिल ही मेरा फ़क़त है मतलब का
घर में साक़ी-ए-मस्त के चल के
नक़्द-ए-दिल का बड़ा तक़ाज़ा है
पहलू में बैठ कर वो पाते क्या
क़ाफ़िला जाता है साग़र की तरफ़ रिंदों का