जाएगी गुलशन तलक उस गुल की आमद की ख़बर
आएगी बुलबुल मिरे घर में मुबारकबाद को
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वो आशिक़ हैं कि मरने पर हमारे
निस्बत वही माह-ए-आसमाँ से
रंगत उस रुख़ की गुल ने पाई है
तीस दिन यार अब न आएगा
कहना मजनूँ से कि कल तेरी तरफ़ आऊँगा
था मिरा नाख़ुन-ए-तराशीदा
बद्र और महर दो हैं नाम उन के
बात करने में होंट लड़ते हैं
बर्ग-ए-गुल आ मैं तेरे बोसे लूँ
मिरे लाशे को कांधा दे के बोले
रुख़-ए-रौशन पे सफ़ा लोट गई
बाम पर आता है हमारा चाँद