इस तरफ़ बज़्म में हम थे वो थे
उस तरफ़ शम्अ थी परवाना था
Rahat Indori
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Gulzar
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Anwar Masood
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(395) Peoples Rate This
रुख़-ए-रौशन दिखाइए साहब
ज़ुल्फ़-ए-शब-रंग जो बनाई है
'सख़ी' बैठिए हट के कुछ उस के दर से
शम्अ को रौशनी का अपने बहुत दावा है
क्या आतिश-ए-फ़ुर्क़त ने बुरी पाई है तासीर
तस्वीर-ए-चश्म-ए-यार का ख़्वाहाँ है बाग़बाँ
नज़'अ के दम भी उन्हें हिचकी न आएगी कभी
क़ब्र में अब किसी का ध्यान नहीं
ज़िंदगी तक मिरी हँस लीजिए आप
पूजना बुत का है ये क्या मज़मून
न बचपन में कहो हम को कड़ी बात
दफ़्न हम हो चुके तो कहते हैं