शम्अ को रौशनी का अपने बहुत दावा है
साक़-ए-पा से कुछ उठा लीजिए दामाँ अपना
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Anwar Masood
Gulzar
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(392) Peoples Rate This
बाम पर आता है हमारा चाँद
कहना मजनूँ से कि कल तेरी तरफ़ आऊँगा
दुल्हन भी अगर बन के आएगी रात
रुख़ हाथ पे रक्खा न करो वक़्त-ए-तकल्लुम
मैं तुझे फिर ज़मीं दिखाऊँगा
ना-ख़ुश जो हो गुल-बदन किसी का
बद्र और महर दो हैं नाम उन के
घर में साक़ी-ए-मस्त के चल के
क्या आतिश-ए-फ़ुर्क़त ने बुरी पाई है तासीर
पूजना बुत का है ये क्या मज़मून
उन की चुटकी में दिल न मल जाता
दिल उसे दे दिया 'सख़ी' ही तो है