मैं तुझे फिर ज़मीं दिखाऊँगा
देख मुझ से न आसमान बिगड़
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चर्ख़ पर बद्र जिस को कहते हैं
मुंकिर-ए-बुत है ये जाहिल तो नहीं
कभी पहुँचेगा दिल उन उँगलियों तक
नज़'अ के दम भी उन्हें हिचकी न आएगी कभी
'सख़ी' बैठिए हट के कुछ उस के दर से
रुख़ पर है मलाल आज कैसा
बहुत ख़्वाब-ए-ग़फ़लत में दिन चढ़ गया
इश्क़ करने में दिल भी क्या है शोख़
तुम न आसान को आसाँ समझो
दिल ही मेरा फ़क़त है मतलब का
यूँही वादा करो यक़ीं हो जाए
रुख़-ए-रौशन पे सफ़ा लोट गई