बहुत ख़्वाब-ए-ग़फ़लत में दिन चढ़ गया
उठो सोने वालो फिर आएगी रात
Allama Iqbal
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Gulzar
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Rahat Indori
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रुख़-ए-रौशन दिखाइए साहब
घर में साक़ी-ए-मस्त के चल के
न छोड़ा हिज्र में भी ख़ाना-ए-तन
नज़'अ के दम भी उन्हें हिचकी न आएगी कभी
रुख़ हाथ पे रक्खा न करो वक़्त-ए-तकल्लुम
मुंकिर-ए-बुत है ये जाहिल तो नहीं
जी जाए मगर न वो परी जाए
हम पे जौर-ओ-सितम के क्या मअनी
ज़िंदगी तक मिरी हँस लीजिए आप
बर्ग-ए-गुल आ मैं तेरे बोसे लूँ
हैफ़ साबित है जेब ने दामन
नक़्द-ए-दिल का बड़ा तक़ाज़ा है