वो आशिक़ हैं कि मरने पर हमारे
करेंगे याद हम को उम्र भर आप
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बहार आ कर जो गुलशन में वो गाएँ
दुल्हन भी अगर बन के आएगी रात
चर्ख़ पर बद्र जिस को कहते हैं
रुख़-ए-रौशन दिखाइए साहब
दिल कलेजे दिमाग़ सीना ओ चश्म
गुफ़्तुगू हो दबी ज़बान बहुत
रुख़ हाथ पे रक्खा न करो वक़्त-ए-तकल्लुम
'सख़ी' से छूट कर जाएँगे घर आप
रुख़ पर है मलाल आज कैसा
मुंकिर-ए-बुत है ये जाहिल तो नहीं
नक़्द-ए-दिल का बड़ा तक़ाज़ा है
यूँही वादा करो यक़ीं हो जाए