ख़ुदा के पास क्या जाएँगे ज़ाहिद
गुनाह-गारों से जब ये बार पाएँ
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है चमन में रहम गुलचीं को न कुछ सय्याद को
यूँ परेशाँ कभी हम भी तो न थे
ना-ख़ुश जो हो गुल-बदन किसी का
हिचकियाँ आती हैं पर लेते नहीं वो मेरा नाम
एक दो तीन चार पाँच छे सात
इश्क़ करने में दिल भी क्या है शोख़
गुफ़्तुगू हो दबी ज़बान बहुत
जीतेंगे न हम से बाज़ी-ए-इश्क़
न आशिक़ हैं ज़माने में न माशूक़
क्या आतिश-ए-फ़ुर्क़त ने बुरी पाई है तासीर
कहना मजनूँ से कि कल तेरी तरफ़ आऊँगा
ज़ुल्फ़-ए-शब-रंग जो बनाई है