हिचकियाँ आती हैं पर लेते नहीं वो मेरा नाम
देखना उन की फ़रामोशी को मेरी याद को
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था मिरा नाख़ुन-ए-तराशीदा
बहार आ कर जो गुलशन में वो गाएँ
रुख़-ए-रौशन पे सफ़ा लोट गई
उन की चुटकी में दिल न मल जाता
की ख़िताबत को गर ख़ुदा समझा
है चमन में रहम गुलचीं को न कुछ सय्याद को
बर्ग-ए-गुल आ मैं तेरे बोसे लूँ
दर्द को गुर्दा तड़पने को जिगर
देखो क़लई खुलेगी साफ़ उस की
बोसा हर वक़्त रुख़ का लेता है
दिल कलेजे दिमाग़ सीना ओ चश्म
हम उन से आज का शिकवा करेंगे