दर्द को गुर्दा तड़पने को जिगर
हिज्र में सब हैं मगर दिल तो नहीं
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
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Ahmad Faraz
Anwar Masood
Gulzar
Javed Akhtar
Wasi Shah
Parveen Shakir
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देखें कहता है ख़ुदा हश्र के दिन
शम्अ को रौशनी का अपने बहुत दावा है
इश्क़ करने में दिल भी क्या है शोख़
जाएगी गुलशन तलक उस गुल की आमद की ख़बर
फिर उलझते हैं वो गेसू की तरह
की ख़िताबत को गर ख़ुदा समझा
क्या आतिश-ए-फ़ुर्क़त ने बुरी पाई है तासीर
न आशिक़ हैं ज़माने में न माशूक़
एक दो तीन चार पाँच छे सात
वो आशिक़ हैं कि मरने पर हमारे
चश्म-ए-मय-गूँ वहाँ शराब लज़ीज़
बोसा हर वक़्त रुख़ का लेता है