हमा-तन हो गए हैं आईना
ख़ुद-नुमाई सी ख़ुद-नुमाई है
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हिचकियाँ आती हैं पर लेते नहीं वो मेरा नाम
'सख़ी' बैठिए हट के कुछ उस के दर से
नज़'अ के दम भी उन्हें हिचकी न आएगी कभी
हैफ़ साबित है जेब ने दामन
रहते काबे में अकेले क्या हम
ज़ुल्फ़-ए-शब-रंग जो बनाई है
है चमन में रहम गुलचीं को न कुछ सय्याद को
बर्ग-ए-गुल आ मैं तेरे बोसे लूँ
ली ज़बाँ उस की जो मुँह में हो गया ज़ौक़-ए-नबात
चर्ख़ पर बद्र जिस को कहते हैं
क़ासिद तिरे बार बार आए