दिखाऊँगा तुझे ज़ाहिद उस आफ़त-ए-दीं को
ख़लल दिमाग़ में तेरे है पारसाई का
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देखे बुलबुल जो यार की सूरत
बुलबुल ने जिसे जा के गुलिस्तान में देखा
गर तुझ में है वफ़ा तो जफ़ाकार कौन है
ऐ शैख़-ए-हरम तक तुझे आना जाना
देखूँ हूँ यूँ मैं उस सितम-ईजाद की तरफ़
ने ग़रज़ कुफ़्र से रखते हैं न इस्लाम से काम
किस मुँह से फिर तू आप को कहता है इश्क़-बाज़
'सौदा' जो तिरा हाल है इतना तो नहीं वो
तिरा ख़त आने से दिल को मेरे आराम क्या होगा
'सौदा' की जो बालीं पे गया शोर-ए-क़यामत
ये रंजिश में हम को है बे-इख़्तियारी
जो गुल है याँ सो उस गुल-ए-रुख़्सार साथ है