किस मुँह से फिर तू आप को कहता है इश्क़-बाज़
ऐ रू-सियाह तुझ से तो ये भी न हो सका
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ले दीदा-ए-तर जिधर गए हम
बहार-ए-बाग़ हो मीना हो जाम-ए-सहबा हो
कैफ़िय्यत-ए-चश्म उस की मुझे याद है 'सौदा'
'सौदा' जो तिरा हाल है इतना तो नहीं वो
जो गुज़री मुझ पे मत उस से कहो हुआ सो हुआ
साक़ी गई बहार रही दिल में ये हवस
मक़्दूर नहीं उस की तजल्ली के बयाँ का
नहीं है घर कोई ऐसा जहाँ उस को न देखा हो
यूँ देख मिरे दीदा-ए-पुर-आब की गर्दिश
गुल फेंके है औरों की तरफ़ बल्कि समर भी
कहते थे हम न देख सकें रोज़-ए-हिज्र को