कौन किसी का ग़म खाता है
कहने को ग़म-ख़्वार है दुनिया
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न जिया तेरी चश्म का मारा
'सौदा' तू इस ग़ज़ल को ग़ज़ल-दर-ग़ज़ल ही कह
बार-हा दिल को मैं समझा के कहा क्या क्या कुछ
किस के हैं ज़ेर-ए-ज़मीं दीदा-ए-नम-नाक हनूज़
क्या ज़िद है मिरे साथ ख़ुदा जाने वगरना
किसे ताक़त है शरह-ए-शौक़ उस मज्लिस में करने की
दिल मत टपक नज़र से कि पाया न जाएगा
बातिल है हम से दावा शायर को हम-सरी का
'सौदा' की जो बालीं पे गया शोर-ए-क़यामत
गर कीजिए इंसाफ़ तो की ज़ोर वफ़ा मैं
दिखाऊँगा तुझे ज़ाहिद उस आफ़त-ए-दीं को
'सौदा' ख़ुदा के वास्ते कर क़िस्सा मुख़्तसर