'सौदा' ख़ुदा के वास्ते कर क़िस्सा मुख़्तसर
अपनी तो नींद उड़ गई तेरे फ़साने में
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बरहमन बुत-कदे के शैख़ बैतुल्लाह के सदक़े
नसीम है तिरे कूचे में और सबा भी है
अबस तू घर बसाता है मिरी आँखों में ऐ प्यारे
'सौदा' शेर में है बड़ाई तुझ को
ये तो नहीं कहता हूँ कि सच-मुच करो इंसाफ़
यारो वो शर्म से जो न बोला तो क्या हुआ
तुझ इश्क़ के मरीज़ की तदबीर शर्त है
'सौदा' जो बे-ख़बर है वही याँ करे है ऐश
बार-हा दिल को मैं समझा के कहा क्या क्या कुछ
गुल फेंके है औरों की तरफ़ बल्कि समर भी
दामन सबा न छू सके जिस शह-सवार का
जिस दम वो सनम सवार होवे