यारो वो शर्म से जो न बोला तो क्या हुआ
आँखों में सौ तरह की हिकायात हो गई
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'सौदा' ख़ुदा के वास्ते कर क़िस्सा मुख़्तसर
बे-वज्ह नईं है आइना हर बार देखना
गर तुझ में है वफ़ा तो जफ़ाकार कौन है
'सौदा' जहाँ में आ के कोई कुछ न ले गया
जब यार ने उठा कर ज़ुल्फ़ों के बाल बाँधे
चेहरे पे न ये नक़ाब देखा
गुल फेंके है औरों की तरफ़ बल्कि समर भी
जिस दम वो सनम सवार होवे
करता हूँ तेरे ज़ुल्म से हर बार अल-ग़ियास
मौज-ए-नसीम आज है आलूदा गर्द से
दिल मत टपक नज़र से कि पाया न जाएगा