अबस तू घर बसाता है मिरी आँखों में ऐ प्यारे
किसी ने आज तक देखा भी है पानी पे घर ठहरा
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साक़ी हमारी तौबा तुझ पर है क्यूँ गवारा
जब यार ने उठा कर ज़ुल्फ़ों के बाल बाँधे
समझे थे हम जो दोस्त तुझे ऐ मियाँ ग़लत
'सौदा' जहाँ में आ के कोई कुछ न ले गया
गर तुझ में है वफ़ा तो जफ़ाकार कौन है
चेहरे पे न ये नक़ाब देखा
ज़ाहिद सभी हैं नेमत-ए-हक़ जो है अक्ल-ओ-शर्ब
'सौदा' हुए जब आशिक़ क्या पास आबरू का
फ़िराक़-ए-ख़ुल्द से गंदुम है सीना-चाक अब तक
दिल मत टपक नज़र से कि पाया न जाएगा
एक हम से तुझे नहीं इख़्लास
दामन सबा न छू सके जिस शह-सवार का