ज़ाहिद सभी हैं नेमत-ए-हक़ जो है अक्ल-ओ-शर्ब
लेकिन अजब मज़ा है शराब ओ कबाब का
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बातिल है हम से दावा शायर को हम-सरी का
साक़ी गई बहार रही दिल में ये हवस
आदम का जिस्म जब कि अनासिर से मिल बना
जिस रोज़ किसी और पे बेदाद करोगे
दीं शैख़ ओ बरहमन ने किया यार फ़रामोश
न कर 'सौदा' तू शिकवा हम से दिल की बे-क़रारी का
'सौदा' तिरी फ़रियाद से आँखों में कटी रात
जब नज़र उस की आन पड़ती है
ये तो नहीं कहता हूँ कि सच-मुच करो इंसाफ़
हिन्दू हैं बुत-परस्त मुसलमाँ ख़ुदा-परस्त
'सौदा' जो बे-ख़बर है वही याँ करे है ऐश
यूँ देख मिरे दीदा-ए-पुर-आब की गर्दिश