ज़ालिम न मैं कहा था कि इस ख़ूँ से दरगुज़र
'सौदा' का क़त्ल है ये छुपाया न जाएगा
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बुलबुल ने जिसे जा के गुलिस्तान में देखा
'सौदा' की जो बालीं पे गया शोर-ए-क़यामत
तुझ इश्क़ के मरीज़ की तदबीर शर्त है
ग़रज़ कुफ़्र से कुछ न दीं से है मतलब
बदला तिरे सितम का कोई तुझ से क्या करे
कीजिए न असीरी में अगर ज़ब्त नफ़स को
आराम फिर कहाँ है जो हो दिल में जा-ए-हिर्स
बरहमन बुत-कदे के शैख़ बैतुल्लाह के सदक़े
दिल में तिरे जो कोई घर कर गया
है मुद्दतों से ख़ाना-ए-ज़ंजीर बे-सदा
ले दीदा-ए-तर जिधर गए हम
तुम कान धर सुनो न सुनो उस के हर्फ़ को