ये तो नहीं कहता हूँ कि सच-मुच करो इंसाफ़
झूटी भी तसल्ली हो तो जीता ही रहूँ मैं
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दीं शैख़ ओ बरहमन ने किया यार फ़रामोश
इस कश्मकश से दाम के क्या काम था हमें
धूम से सुनते हैं अब की साल आती है बहार
'सौदा' जो तिरा हाल है इतना तो नहीं वो
करता हूँ तेरे ज़ुल्म से हर बार अल-ग़ियास
दिलदार उस को ख़्वाह दिल-आज़ार कुछ कहो
सदमा हर-चंद तिरे जौर से जाँ पर आया
देखे बुलबुल जो यार की सूरत
बे-सबाती ज़माने की नाचार
आराम फिर कहाँ है जो हो दिल में जा-ए-हिर्स
ये रंजिश में हम को है बे-इख़्तियारी
कीजिए न असीरी में अगर ज़ब्त नफ़स को