'सौदा' जहाँ में आ के कोई कुछ न ले गया
जाता हूँ एक मैं दिल-ए-पुर-आरज़ू लिए
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दिल मत टपक नज़र से कि पाया न जाएगा
जो गुल है याँ सो उस गुल-ए-रुख़्सार साथ है
मैं ने तुम को दिल दिया और तुम ने मुझे रुस्वा किया
दिलदार उस को ख़्वाह दिल-आज़ार कुछ कहो
ऐ आह तिरी क़द्र असर ने तो न जानी
इस कश्मकश से दाम के क्या काम था हमें
अपने का है गुनाह बेगाने ने क्या किया
ने ग़रज़ कुफ़्र से रखते हैं न इस्लाम से काम
नसीम है तिरे कूचे में और सबा भी है
तिरा ख़त आने से दिल को मेरे आराम क्या होगा
कोताह न उम्र-ए-मय-परस्ती कीजे
ग़रज़ कुफ़्र से कुछ न दीं से है मतलब