आदम का जिस्म जब कि अनासिर से मिल बना
कुछ आग बच रही थी सो आशिक़ का दिल बना
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कब दिल शिकस्त-गाँ से कर अर्ज़-ए-हाल आया
बेचैन जो रखती है तुम्हें चाह किसू की
'सौदा' ख़ुदा के वास्ते कर क़िस्सा मुख़्तसर
'सौदा' की जो बालीं पे गया शोर-ए-क़यामत
नसीम है तिरे कूचे में और सबा भी है
'सौदा' जहाँ में आ के कोई कुछ न ले गया
न जिया तेरी चश्म का मारा
बातिल है हम से दावा शायर को हम-सरी का
बादशाहत दो जहाँ की भी जो होवे मुझ को
ज़ाहिद सभी हैं नेमत-ए-हक़ जो है अक्ल-ओ-शर्ब
क्या ज़िद है मिरे साथ ख़ुदा जाने वगरना
हर संग में शरार है तेरे ज़ुहूर का