गर तुझ में है वफ़ा तो जफ़ाकार कौन है
दिल-दार तू हुआ तो दिल-आज़ार कौन है
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जिस रोज़ किसी और पे बेदाद करोगे
हस्ती को तिरी बस है मियाँ गुल की इशारत
दामन सबा न छू सके जिस शह-सवार का
यूँ देख मिरे दीदा-ए-पुर-आब की गर्दिश
न कर 'सौदा' तू शिकवा हम से दिल की बे-क़रारी का
ये रंजिश में हम को है बे-इख़्तियारी
तुझ क़ैद से दिल हो कर आज़ाद बहुत रोया
कहते हैं लोग यार का अबरू फड़क गया
जब यार ने उठा कर ज़ुल्फ़ों के बाल बाँधे
गदा दस्त-ए-अहल-ए-करम देखते हैं
है मुद्दतों से ख़ाना-ए-ज़ंजीर बे-सदा
'सौदा' तू इस ग़ज़ल को ग़ज़ल-दर-ग़ज़ल ही कह