न कर 'सौदा' तू शिकवा हम से दिल की बे-क़रारी का
मोहब्बत किस को देती है मियाँ आराम दुनिया में
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गर यार के सामने मैं रोया तो क्या
समझे थे हम जो दोस्त तुझे ऐ मियाँ ग़लत
इश्क़ से तो नहीं हूँ मैं वाक़िफ़
गुल फेंके है औरों की तरफ़ बल्कि समर भी
अपने का है गुनाह बेगाने ने क्या किया
बादशाहत दो जहाँ की भी जो होवे मुझ को
बहार-ए-बाग़ हो मीना हो जाम-ए-सहबा हो
करता हूँ तेरे ज़ुल्म से हर बार अल-ग़ियास
साक़ी हमारी तौबा तुझ पर है क्यूँ गवारा
यूँ देख मिरे दीदा-ए-पुर-आब की गर्दिश
दामन सबा न छू सके जिस शह-सवार का
जब यार ने उठा कर ज़ुल्फ़ों के बाल बाँधे