इश्क़ से तो नहीं हूँ मैं वाक़िफ़
दिल को शोला सा कुछ लिपटता है
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ले दीदा-ए-तर जिधर गए हम
'सौदा' शेर में है बड़ाई तुझ को
सदमा हर-चंद तिरे जौर से जाँ पर आया
गर हो शराब ओ ख़ल्वत ओ महबूब-ए-ख़ूब-रू
काम आई कोहकन की मशक़्क़त न इश्क़ में
बेचैन जो रखती है तुम्हें चाह किसू की
फ़िक्र-ए-मआश इश्क़-ए-बुताँ याद-ए-रफ़्तगाँ
जब यार ने उठा कर ज़ुल्फ़ों के बाल बाँधे
'सौदा' हुए जब आशिक़ क्या पास आबरू का
'सौदा' जो तिरा हाल है इतना तो नहीं वो
दिल के टुकड़ों को बग़ल-गीर लिए फिरता हूँ
ऐ दीदा ख़ानुमाँ तू हमारा डुबो सका