फ़िक्र-ए-मआश इश्क़-ए-बुताँ याद-ए-रफ़्तगाँ
इस ज़िंदगी में अब कोई क्या क्या किया करे
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या रब कहीं से गर्मी-ए-बाज़ार भेज दे
इस कश्मकश से दाम के क्या काम था हमें
तुम कान धर सुनो न सुनो उस के हर्फ़ को
कहते थे हम न देख सकें रोज़-ए-हिज्र को
जो गुज़री मुझ पे मत उस से कहो हुआ सो हुआ
'सौदा' हुए जब आशिक़ क्या पास आबरू का
नहीं है घर कोई ऐसा जहाँ उस को न देखा हो
'सौदा' तिरी फ़रियाद से आँखों में कटी रात
वे सूरतें इलाही किस मुल्क बस्तियाँ हैं
देखूँ हूँ यूँ मैं उस सितम-ईजाद की तरफ़
सदमा हर-चंद तिरे जौर से जाँ पर आया
ज़ाहिद सभी हैं नेमत-ए-हक़ जो है अक्ल-ओ-शर्ब