'सौदा' जो तिरा हाल है इतना तो नहीं वो
क्या जानिए तू ने उसे किस आन में देखा
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बादशाहत दो जहाँ की भी जो होवे मुझ को
गर कीजिए इंसाफ़ तो की ज़ोर वफ़ा मैं
नसीम है तिरे कूचे में और सबा भी है
जब नज़र उस की आन पड़ती है
हर संग में शरार है तेरे ज़ुहूर का
'सौदा' जहाँ में आ के कोई कुछ न ले गया
गर तुझ में है वफ़ा तो जफ़ाकार कौन है
जो गुज़री मुझ पे मत उस से कहो हुआ सो हुआ
तुझ क़ैद से दिल हो कर आज़ाद बहुत रोया
साक़ी गई बहार रही दिल में ये हवस
दिलदार उस को ख़्वाह दिल-आज़ार कुछ कहो
'सौदा' हुए जब आशिक़ क्या पास आबरू का