हर संग में शरार है तेरे ज़ुहूर का
मूसा नहीं जो सैर करूँ कोह तूर का
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गर तुझ में है वफ़ा तो जफ़ाकार कौन है
ग़ुंचे से मुस्कुरा के उसे ज़ार कर चले
दिल में तिरे जो कोई घर कर गया
कब दिल शिकस्त-गाँ से कर अर्ज़-ए-हाल आया
कहते हैं लोग यार का अबरू फड़क गया
कहियो सबा सलाम हमारा बहार से
फ़िक्र-ए-मआश इश्क़-ए-बुताँ याद-ए-रफ़्तगाँ
जब यार ने उठा कर ज़ुल्फ़ों के बाल बाँधे
कहते थे हम न देख सकें रोज़-ए-हिज्र को
जो गुल है याँ सो उस गुल-ए-रुख़्सार साथ है
आदम का जिस्म जब कि अनासिर से मिल बना
अम्मामे को उतार के पढ़ीयो नमाज़ शैख़