अम्मामे को उतार के पढ़ीयो नमाज़ शैख़
सज्दे से वर्ना सर को उठाया न जाएगा
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समझे थे हम जो दोस्त तुझे ऐ मियाँ ग़लत
यूँ देख मिरे दीदा-ए-पुर-आब की गर्दिश
तुझ क़ैद से दिल हो कर आज़ाद बहुत रोया
हर संग में शरार है तेरे ज़ुहूर का
किस मुँह से फिर तू आप को कहता है इश्क़-बाज़
नासेह को जेब सीने से फ़ुर्सत कभू न हो
जब यार ने उठा कर ज़ुल्फ़ों के बाल बाँधे
वे सूरतें इलाही किस मुल्क बस्तियाँ हैं
करता हूँ तेरे ज़ुल्म से हर बार अल-ग़ियास
देखे बुलबुल जो यार की सूरत
हस्ती को तिरी बस है मियाँ गुल की इशारत
हर आन आ मुझी को सताते हो नासेहो